प्रायोगिक डिजाइन- एकल समूह डिजाइन, रिवर्स समूह डिजाइन, दोहराया माप डिजाइन, स्थैतिक समूह तुलना डिजाइन, समतुल्य समूह डिजाइन, फैक्टोरियल डिजाइन/ Experimental Design- Single Group Design, Reverse Group Design, Repeated Measure Design, Static Group Comparison Design, Equated Group Design, Factorial Design In Hindi

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प्रायोगिक डिज़ाइन: प्रकार और उनके लक्षण

प्रायोगिक डिज़ाइन वह संरचित योजना होती है जिसका उपयोग शोधकर्ता अपने प्रयोगों को संचालित करने के लिए करते हैं। यह यह परिभाषित करता है कि डेटा कैसे एकत्रित किया जाएगा, कौन से चर (variables) बदले जाएंगे, और परिणामों का विश्लेषण कैसे किया जाएगा। विभिन्न प्रायोगिक डिज़ाइन को अनुसंधान प्रश्न, अध्ययन की प्रकृति, और आवश्यक डेटा के प्रकार के आधार पर चुना जाता है। यहां कुछ सामान्य प्रकार के प्रायोगिक डिज़ाइन दिए गए हैं:

1. सिंगल ग्रुप डिज़ाइन

सिंगल ग्रुप डिज़ाइन में, एक ही समूह को प्रयोगात्मक उपचार या हस्तक्षेप के अधीन किया जाता है। इसमें कोई नियंत्रण या तुलना समूह नहीं होता, जिससे उपचार के प्रभाव का मूल्यांकन करना मुश्किल हो सकता है। यह डिज़ाइन सरल है, लेकिन इसमें नियंत्रण समूह का अभाव होता है, जिससे परिणामों को सीधे उपचार से जोड़ने में कठिनाई होती है क्योंकि अन्य चर भी प्रभाव डाल सकते हैं।

  • उदाहरण: एक नए शिक्षण पद्धति के प्रभाव को छात्र के प्रदर्शन पर केवल एक कक्षा का उपयोग करके अध्ययन करना।

2. रिवर्स ग्रुप डिज़ाइन (या काउंटर बैलेंस डिज़ाइन)

रिवर्स ग्रुप डिज़ाइन में, दो या अधिक समूह शामिल होते हैं, लेकिन उपचारों का क्रम उल्टा किया जाता है। यह मुख्य रूप से क्रम प्रभावों (जैसे अभ्यास या थकान) को नियंत्रित करने के लिए उपयोग किया जाता है, जो परिणामों को विकृत कर सकते हैं। यह डिज़ाइन विशेष रूप से पुनरावृत्त माप (repeated measures) में उपयोगी होता है, जहां एक ही प्रतिभागी विभिन्न उपचारों का अनुभव करते हैं।

  • उदाहरण: एक अध्ययन में दो अलग-अलग शिक्षण विधियों की प्रभावकारिता का परीक्षण करते समय, एक समूह पहले पद्धति A का अनुभव करता है और फिर पद्धति B का, जबकि दूसरा समूह पहले पद्धति B का अनुभव करता है और फिर पद्धति A का।

3. रिपीटेड मेजर डिज़ाइन

रिपीटेड मेजर डिज़ाइन में, एक ही प्रतिभागियों को विभिन्न स्थितियों में कई बार परीक्षण किया जाता है। इस प्रकार के डिज़ाइन से भिन्नताओं को कम करने में मदद मिलती है क्योंकि एक ही प्रतिभागी को उनके अपने नियंत्रण के रूप में उपयोग किया जाता है, जिससे स्वतंत्र चर के प्रभाव का पता लगाना आसान होता है। हालांकि, इसमें कैरीओवर प्रभाव (carryover effects) हो सकते हैं, जिसमें प्रतिभागी के पिछले अनुभव अगले परीक्षणों पर प्रभाव डाल सकते हैं।

  • उदाहरण: विभिन्न मात्रा में कैफीन के सेवन के बाद प्रतिभागियों की प्रतिक्रिया समय को मापना, जिसमें प्रत्येक प्रतिभागी को विभिन्न खुराकों के बाद कई बार परीक्षण किया जाता है।

4. स्टैटिक ग्रुप तुलना डिज़ाइन

स्टैटिक ग्रुप तुलना डिज़ाइन में, दो या अधिक समूह होते हैं, जिनमें से एक समूह प्रयोगात्मक उपचार के अधीन होता है और दूसरा समूह नहीं होता। समूहों की तुलना उनके परिणामों या आश्रित चर पर की जाती है। इस डिज़ाइन में यादृच्छिक आवंटन (random assignment) शामिल नहीं होता है, और इसके परिणामस्वरूप यह अधिक पक्षपाती (bias) हो सकता है क्योंकि समूह पहले से एक जैसे नहीं हो सकते हैं।

  • उदाहरण: एक कक्षा को नए शिक्षण पद्धति के तहत पढ़ाना और दूसरी कक्षा को पारंपरिक पद्धति का पालन करना, बिना छात्रों को यादृच्छिक रूप से विभाजित किए।

5. इक्वेटेड ग्रुप डिज़ाइन

इक्वेटेड ग्रुप डिज़ाइन में, समूहों को अध्ययन शुरू करने से पहले कुछ विशेषताओं (जैसे आयु, लिंग, प्रारंभिक प्रदर्शन) के आधार पर समान (equivalent) बनाया जाता है। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना होता है कि समूहों में पहले से कोई महत्वपूर्ण भिन्नताएँ नहीं हैं जो परिणामों को प्रभावित कर सकती हैं। यह डिज़ाइन समूहों के बीच प्री-एक्सिस्टिंग अंतर को कम करने में मदद करता है।

  • उदाहरण: छात्रों को उनकी शैक्षिक प्रदर्शन के आधार पर मिलाना और फिर एक समूह को नए शिक्षण पद्धति के तहत पढ़ाना और दूसरे को पारंपरिक पद्धति के तहत पढ़ाना।

6. फैक्टोरियल डिज़ाइन

फैक्टोरियल डिज़ाइन का उपयोग तब किया जाता है जब शोधकर्ता एक से अधिक स्वतंत्र चर (factors) के प्रभाव को आश्रित चर पर देखना चाहते हैं। यह डिज़ाइन शोधकर्ताओं को न केवल प्रत्येक चर के व्यक्तिगत प्रभावों का अध्ययन करने की अनुमति देता है, बल्कि यह भी जांचने का मौका देता है कि वे चरों एक-दूसरे के साथ मिलकर कैसे प्रभाव डालते हैं। यह डिज़ाइन अधिक जटिल होता है और तब उपयोग किया जाता है जब शोधकर्ता मानते हैं कि कई कारक मिलकर परिणामों को प्रभावित करते हैं।

  • उदाहरण: छात्र के प्रदर्शन पर विभिन्न शिक्षण विधियों (Factor 1) और अध्ययन समय (Factor 2) का प्रभाव देखना, जिसमें प्रत्येक चर के कई स्तर होते हैं (जैसे विधि A, विधि B, विधि C फैक्टर 1 के लिए; 1 घंटा, 2 घंटे फैक्टर 2 के लिए)। एक 3×2 फैक्टोरियल डिज़ाइन सभी संभावित संयोजनों का परीक्षण करेगा।

निष्कर्ष

प्रत्येक प्रायोगिक डिज़ाइन की अपनी ताकत और सीमाएँ होती हैं, और डिज़ाइन का चयन अनुसंधान प्रश्न, उपलब्ध संसाधनों और एकत्र किए जाने वाले डेटा के प्रकार के आधार पर किया जाता है। उपयुक्त डिज़ाइन का चयन करने से शोधकर्ता यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि उनके परिणाम वैध, विश्वसनीय और अर्थपूर्ण हों। प्रायोगिक डिज़ाइन कारण और प्रभाव के रिश्तों को समझने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, और सही डिज़ाइन का चयन वैज्ञानिक निष्कर्षों तक पहुँचने के लिए आवश्यक होता है।

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