प्रारंभिक उपनिषदों में योग/ Yoga in early upnishads In Hindi

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 प्रारंभिक उपनिषदों में योग:

प्रारंभिक उपनिषदों में, योग को एक आध्यात्मिक अभ्यास और परम सत्य या वास्तविकता (ब्रह्म) को प्राप्त करने के मार्ग के रूप में प्रस्तुत किया गया है। इस संदर्भ में, योग केवल शारीरिक आसन नहीं है, बल्कि एक व्यापक प्रणाली है जिसमें आध्यात्मिक ज्ञान और मुक्ति (मोक्ष) प्राप्त करने के उद्देश्य से नैतिक, मानसिक और ध्यान संबंधी अभ्यास शामिल हैं।

यहाँ प्रारंभिक उपनिषदों में योग को किस प्रकार चित्रित किया गया है, इसका संक्षिप्त विवरण दिया गया है:

दार्शनिक आधार: 

उपनिषद वास्तविकता, स्वयं (आत्मा) और परम वास्तविकता (ब्रह्म) की प्रकृति पर चर्चा करते हैं। योग को सार्वभौमिक चेतना (ब्रह्म) के साथ व्यक्तिगत आत्मा (आत्मा) की एकता का एहसास करने के साधन के रूप में प्रस्तुत किया जाता है।

आत्म-साक्षात्कार: 

योग को आत्म-साक्षात्कार के मार्ग के रूप में देखा जाता है, जहाँ अभ्यासकर्ता अहंकार और भौतिक शरीर की सीमाओं से परे जाकर स्वयं की वास्तविक प्रकृति को शाश्वत और अपरिवर्तनीय के रूप में महसूस करता है।

ध्यान संबंधी अभ्यास: 

उपनिषद योग के आवश्यक पहलुओं के रूप में विभिन्न ध्यान संबंधी अभ्यासों, जैसे कि श्वास नियंत्रण (प्राणायाम), इंद्रियों को वापस लेना (प्रत्याहार), एकाग्रता (धारणा) और ध्यान (ध्यान) का वर्णन करते हैं। इन अभ्यासों का उद्देश्य मन को शांत करना और चेतना की उच्च अवस्थाओं को प्राप्त करना है।

 ज्ञान का मार्ग (ज्ञान योग): 

उपनिषदों में वर्णित योग के मुख्य मार्गों में से एक ज्ञान का मार्ग (ज्ञान योग) है। इस मार्ग में आत्म-जांच और दार्शनिक चिंतन शामिल है, ताकि स्वयं की वास्तविक प्रकृति और परम वास्तविकता का एहसास हो सके।

भक्ति का मार्ग (भक्ति योग): 

जबकि प्रारंभिक उपनिषद ज्ञान और ध्यान पर अधिक ध्यान केंद्रित करते हैं, भगवद गीता जैसे बाद के ग्रंथ ईश्वर से मिलन प्राप्त करने के साधन के रूप में भक्ति के मार्ग (भक्ति योग) का परिचय देते हैं। भक्ति योग मुक्ति के मार्ग के रूप में ईश्वर के प्रति प्रेम, भक्ति और समर्पण पर जोर देता है।

त्याग (संन्यास): 

उपनिषद त्याग के मार्ग (संन्यास) पर भी चर्चा करते हैं, जहाँ व्यक्ति आध्यात्मिक प्राप्ति की खोज में सांसारिक इच्छाओं और आसक्तियों का त्याग करता है। त्याग को भौतिक दुनिया से खुद को अलग करने और आध्यात्मिक मार्ग पर ध्यान केंद्रित करने के साधन के रूप में देखा जाता है।

अस्तित्व की एकता: 

उपनिषदों में योग सभी अस्तित्व की एकता पर जोर देता है। यह सिखाता है कि व्यक्तिगत आत्म (आत्मा) परम वास्तविकता (ब्रह्म) के समान है और इस सत्य को समझने से जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्ति मिलती है।

कुल मिलाकर, प्रारंभिक उपनिषदों में योग को एक गहन आध्यात्मिक अभ्यास के रूप में प्रस्तुत किया गया है जिसका उद्देश्य परम सत्य को समझना और जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्ति प्राप्त करना है। इसमें विभिन्न मार्ग और अभ्यास शामिल हैं जो अभ्यासकर्ता को अहंकार की सीमाओं को पार करने और स्वयं और ब्रह्मांड की वास्तविक प्रकृति का एहसास करने में मदद करते हैं।